sawan somvar:- ॐ पवित्र सावन माह के प्रथम सोमवार की व्रत कथा/ॐ Sawan Somvar: - Spritual Story of the first Monday of the pavitra month of Sawan,Somvar Vrat Katha

सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार की पौराणिक कथा/ 𝚃𝚑𝚎 𝚝𝚛𝚊𝚍𝚒𝚝𝚒𝚘𝚗𝚊𝚕 𝚜𝚝𝚘𝚛𝚢 𝚘𝚏 𝚝𝚑𝚎 𝚏𝚒𝚛𝚜𝚝 𝙼𝚘𝚗𝚍𝚊𝚢 𝚘𝚏 𝚝𝚑𝚎 𝚑𝚘𝚕𝚢 𝚖𝚘𝚗𝚝𝚑 𝚘𝚏 sawan,Somvar Vrat Katha ~

सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार की पौराणिक कथा, 𝚃𝚑𝚎 𝚝𝚛𝚊𝚍𝚒𝚝𝚒𝚘𝚗𝚊𝚕 𝚜𝚝𝚘𝚛𝚢 𝚘𝚏 𝚝𝚑𝚎 𝚏𝚒𝚛𝚜𝚝 𝙼𝚘𝚗𝚍𝚊𝚢 𝚘𝚏 𝚝𝚑𝚎 𝚑𝚘𝚕𝚢 𝚖𝚘𝚗𝚝𝚑 𝚘𝚏 sawan, Somvar Vrat Katha, सावन का पवित्र महीना, सोमवार की पौराणिक कथा, हर सोमवार को भोलेनाथ की पूजा, संतान प्राप्ति का आशीर्वाद, माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा, जय भोलेनाथ, जय माता पार्वती, हे भोलेनाथ, आप किसी को भी वैसा कष्ट मत देना जैसा आपने साहूकार और उसकी स्त्री को पहले दिया था और जैसे आपने उनके बेटे को दीर्घायु प्रदान किया, वैसे ही इस कथा को कहने, सुनने और कहने वालों पर भी कृपा करना, सावन महीने के पीछे की कहानी क्या है?, सोमवार व्रत रहने से क्या मिलता है?,
Somvar Vrat Katha

सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है, ऐसे में हम आपके लिए लेकर आए हैं सावन महीने के पहले सोमवार की पौराणिक कथा, बहुत पहले की बात है अमरपुर नामक महानगर में एक धनी साहूकार रहता था, उसकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वह बहुत दुखी रहता था । संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को भोलेनाथ की पूजा करता था और शाम को मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाता था, उसकी भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई और भोलेनाथ से कहने लगी हे प्राणनाथ यह आपका सच्चा भक्त है इसकी इच्छा पूरी करो, यह सुनकर भोलेनाथ ने कहा पार्वती जी, साहूकार के पूर्व जन्म के कर्मों के कारण इसे संतान सुख नहीं है, लेकिन माता पार्वती नहीं मानी । भोलेनाथ ने उस साहूकार के स्वप्न में दर्शन दिए और उसे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और वरदान के साथ ही यह भी बताया कि उसके पुत्र की आयु अल्पायु होगी और उसकी आयु केवल 16 वर्ष होगी । यह सुनकर साहूकार खुश तो हुआ लेकिन साथ ही वह परेशान भी हुआ । साहूकार ने सुबह यह सारी बात अपनी स्त्री को बताई । साहूकार की स्त्री भी पुत्र की अल्पायु के बारे में जानकर बहुत दुखी हुई लेकिन साहूकार ने अपना सोमवार का नियम नहीं छोड़ा । कुछ समय पश्चात साहूकार के घर एक सुन्दर पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम साहूकार ने अमर रखा । जब अमर 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार ने अमर को उसके मामा के साथ काशी में शिक्षा प्राप्ति के लिए भेज दिया । साहूकार ने उन्हें यात्रा के लिए कुछ धन- धान्य दिया और कहा कि जहां भी रात्रि विश्राम करोगे, वहीं यज्ञ आदि करवाना तथा ब्राह्मणों को भोजन करवाना । अमर अपने मामा के साथ यात्रा पर निकल पड़ा । मार्ग में वे एक ऐसे क्षेत्र में पहुंचे जहां रानी का विवाह हो रहा था लेकिन जिस नेपोलियन से उसका विवाह होने वाला था उसकी एक आंख अचानक किसी कारण से खराब हो गई । किसी को इस बात का पता न चले इसलिए नेपोलियन के पिता ने अमर से कुंवर के स्थान पर बैठने का अनुरोध किया । अमर ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और राजकुमारी चंद्रिका से विवाह कर लिया । प्रस्थान के समय अमर ने राजकुमारी चंद्रिका को सारी बात बताई और राजकुमारी चंद्रिका को उसके पिता के घर छोड़कर काशी की ओर चल दिया । जब अमर 16 वर्ष का हुआ तो उसने एक यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ के पश्चात उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया तथा अन्न- वस्त्र भी दान किया । उस रात अमर की मौत हो गई । उसके मामा जोर- जोर से रोने लगे । उनका आर्तनाद सुनकर भोलेनाथ और माता पार्वती वहां आ पहुंचे । अमर के मामा का दुख देखकर माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा," प्रभु! इस व्यक्ति का दुख दूर कीजिए ।" भोलेनाथ ने कहा," पार्वती! यह वही साहूकार का पुत्र है, जिसे 16 वर्ष जीने का वरदान मिला था ।" माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा," हे प्राणनाथ! इसका पिता 16 वर्षो से सोमवार का व्रत रखता आ रहा है और आपको भोग लगाकर दीपक जलाता है । कृपया इसका कष्ट दूर कीजिए ।" माता पार्वती की ऐसी प्रार्थना सुनकर भोलेनाथ ने अमर को जीवनदान दिया । वरदान पाते ही अमर जीवित हो गया । स्वस्थ होकर आते ही वह अपने नगर को लौट आया । रास्ते में वह राजकुमारी चंद्रिका के पास पहुंचा । राजा और रानी चंद्रिका ने अमर का आदर- सत्कार किया । राजा ने रानी चंद्रिका को अमर के साथ उसके घर पहुंचा दिया । दूसरी ओर साहूकार और उसकी स्त्री को पता था कि उनके बेटे की मृत्यु 16 वर्ष की आयु में निश्चित है, इसलिए वे बहुत दुखी थे और कष्ट में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । साथ ही उनका बेटा अमर रानी चंद्रिका के साथ घर पहुंचा । अमर को उसकी नवविवाहित स्त्री के साथ देखकर साहूकार और उसकी स्त्री बहुत प्रसन्न हुए । उसी रात्रि भोलेनाथ साहूकार के स्वप्न में प्रकट हुए और बोले," हे साहूकार, मैं तेरे सोमवार की पूजा से प्रसन्न होकर तेरे बेटे को दीर्घायु प्रदान कर रहा हूं ।" हे भोलेनाथ, आप किसी को भी वैसा कष्ट मत देना जैसा आपने साहूकार और उसकी स्त्री को पहले दिया था । और जैसे आपने उनके बेटे को दीर्घायु प्रदान किया, वैसे ही इस कथा को कहने, सुनने और कहने वालों पर भी कृपा करना । 

जय भोलेनाथ ।

जय माता पार्वती ।

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