महादेव के सातवे ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग के बारे में रहस्यमय तथ्य/Mysterious facts about Trimbakeshwar Temple/Jyotirlinga, the seventh Jyotirlinga of Mahadev

  

त्र्यंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग
त्र्यंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग

त्रयंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग का इतिहास ~

 आज हम बात करेंगे त्र्यंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग के बारे में ~  यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर है । यह मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं, जिन्हें भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है । त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की सबसे अद्भुत और असाधारण बात तो यह है कि इसके तीन मुख है एक भगवान ब्रह्मा, एक भगवान विष्णु और एक भगवान रुद्र । इस लिंग के चारों ओर एक रत्नजड़ित मुकुट रखा गया है, जिसे त्रिदेव के मुखौटे के रूप में रखा गया है, कहा जाता है की यह मुकुट पांडवों के समय से यहीं पर है । इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रतन जड़े हुए हैं । त्र्यंबकेश्वर मंदिर में इस मुकुट को सिर्फ सोमवार के दिन 4-5 बजे तक दिखाया जाता है । त्र्यंबकेश्वर मंदिर ब्रह्मगिरि पर्वत के तलहटी में स्थित है । त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण गोदावरी नदी के किनारे काले पत्थरों से किया गया है । इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है ।


नासिक से त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कितने किलोमीटर है? ~

त्र्यंबकेश्वर मंदिर/ज्योतिर्लिंग एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत के महाराष्ट्र राज्य में नासिक शहर से 28 किलोमीटर और नासिक रोड से लगभग 40 किलोमीटर दूर त्रंबकेश्वर तहसील के त्रिम्बक शहर में बना हुआ है ।


त्र्यंबकेश्वर में कौन कौन सी पूजा होती है?

इस त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पंचकोशी में कालसर्प, शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण, नागबलि आदि की पूजा कराई जाती है, जिनका आयोजन भक्तगण अलग अलग मनोकामना को पूर्ण करने के लिए करवातें हैं । 


त्र्यंबकेश्वर किसने बनाया? ~

 इस प्राचीन त्र्यंबकेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालासाहब अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था । इस मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1755 में आरंभ हुआ था, और 1786 में संपन्न हुआ । तथ्यों के मुताबिक इस भव्य प्राचीन मंदिर के निर्माण कार्य में लगभग ₹16 लाख खर्च किए गए थे, इस राशि को उस समय काफी बड़ी रकम माना जाता था ।

 

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य ~

त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु आर्य शैली का अद्भुत उदाहरण है । इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात शिवलिंग की सिर्फ ऑंख/आग ही दिखाई देते हैं लिंग नहीं । यदि ध्यान से देखा जाए तो ऑंख/आग के भीतर एक इंच के तीन लिंक दिखाई देते हैं इन तीनों लिंगों को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है । त्र्यंबकेश्वर मंदिर मे प्रातःकाल के समय होने वाली पूजा के बाद इस ऑंख/आग पर पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है । त्र्यंबकेश्वर परिसर में कुशाव्रत नामक कुंड है जो गोदावरी नदी का स्रोत है । कहा जाता है कि ब्रह्मगिरी पर्वत से गोदावरी बार बार लुप्त हो जाया करती थी, गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बांध दिया था । इसके बाद से इस कुंड में हमेशा पानी रहता है, इस कुंड को कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है । कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं । शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मगिरी पर्वत की चोटी तक पहुंचने के लिए 724 सीढियां बनाई गई हैं । इन सीढ़ियों पर चढ़ने के उपरांत रामकुंड और लक्ष्मण कुंड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुईं भगवती गोदावरी के दर्शन प्राप्त होते हैं । 


मैं त्र्यंबकेश्वर में कहां स्नान कर सकता हूं? ~

कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े कुशावर्त कुंड में शाही स्नान करते हैं । आप लोग भी इस कुशावर्त मे स्नान कर सकते हो

 

त्र्यंबकेश्वर की कहानी क्या है? ~

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग से जुड़ी हुई पौराणिक कथा तथा साथ ही जानेंगे की त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई?/आखिर भगवान शिव त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में यहाँ उत्पन्न क्यों हुए? - पुराणो के अनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नी किसी बात पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से नाराज हो जाती है । उन सभी पत्नियों ने अपने पति को गौतम ऋषि का अपमान करने के लिए प्रेरित किया । उन ब्राह्मणों ने इसके लिए भगवान गणेश की आराधना की और उसकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उनसे वर मांगने को कहा, उन ब्राह्मणों ने कहा प्रभु किसी प्रकार भगवान श्री गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिये । गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी । तब गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप धरकर ऋषि गौतम के खेत में जाकर फसल खाने लगे । गाय को फसल खाते देख ऋषि गौतम ने हाथ में डंडा लेकर उस गाय को वहाँ से भगाने लगे । उनके डंडे का स्पर्श होते है गाय वही पर गिर कर मर गई । उस समय सारे ब्राह्मण एकत्रित होकर गोहत्यारे कहकर ऋषि गौतम का अपमान करने लगे । ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर गौतम ऋषि उन ब्राह्मणों से प्रायश्चित और उद्धार का उपाय पूछने लगे । तब उन्होंने कहा, गौतम तुम अपने पाप को सर्वत्र बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो और फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो । इसके बाद ब्रह्मगिरी का 101 बार परिक्रमा करो तभी तुम्हारी शुद्धि होगी । अथवा यहाँ  गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके 1 करोङ पार्थिव शिवलिंग से भगवान शिवजी की आराधना करो, इसके बाद फिर गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरी के 11 बार परिक्रमा करो फिर 100 घरों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान करने से तुम्हारा उद्धार होगा । इसके बाद भी गौतम ऋषि ने सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे । इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वर मांगने को कहा- महर्षि गौतम ने कहा भगवान आप मुझे गोहत्या के पाप से मुक्त कर दीजिए । भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वदा निष्पाप हो । गो हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगवाया गया था ऐसा करने वालो को मे दण्ड देना चाहता हूं, तब ऋषि गौतम ने कहा उनके ऐसा करने के कारण ही मे आप के दर्शन कर पाया हू, आप उनको मेरा प्रम समझकर माफ कर दिजिए । वहां ऋषि गौतम के साथ सभी ऋषियों ने वही रहने का आग्रह किया, तब महादेव ने उनके आग्रह को स्वीकार कर वही त्र्यंबकेश्वर के रूप मे स्थापित हो गए । त्र्यंबकेश्वर मंदिर मे जब शाही सवारी निकाली जाती है तो वह दर्शय देखने लायक होता है । इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महादेव के पंचमुखी मुकुटे को पालकी मे बैठाकर गांव भर मे घुमाया जाता है और फिर कुशाव्रत कुण्ड मे स्नान कराकर पुन: मंदिर मे स्थापित कर दिया जाता है ।

हर हर महादेव ।

जय त्र्यंबकेश्वर बाबा की ।

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