अयोध्या राम मंदिर का सन् 1528 - 22 जनवरी 2024 तक 496 वर्षो के बाद बने राम मंदिर का सम्पूर्ण इतिहास/Complete history of Ayodhya Ram Temple from 1528 to 22 january 2024. Ram mandir was built after 496 years.

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अयोध्या राम मंदिर


अयोध्या राम मंदिर का 1528 से लेकर 22जनवरी 2024 तक का इतिहास/What is the story behind Ram Mandir Ayodhya? ~

दोस्तो 1528 ईस्वी मे बाबर के कहने पर राम मंदिर को गिराकर उसकी जगह पर बाबरी मस्जिद को खङा किया गया था लेकिन अब 496 साल के बाद उसी जगह पर अयोध्या राम मंदिर का पुन: निर्माण 22 जनवरी 2024 को हो गया है ,जो की हर हिंदुस्तानी के लिए गर्व की बात है ।
साल 1528 में मीर बाकी, जो बाबर का सेनापति हुआ करता था, उसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी । यह मस्जिद ठीक उसी जगह पर बनाई गई जहाँ प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था और इसे बनाने के लिए वहाँ पहले से मौजूद मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था । अब मुगलों ने भगवान को उनके घर से तो निकाल दिया पर इन्हें कौन बताए कि भारत के लोगों के दिलों में राम बसते हैं और श्रीराम के प्रति हमारी यही श्रद्धा है, जिसने सालों तक चले कोर्ट केस के बीच भी किसी के मन से राम मंदिर बनने की आस को खत्म नहीं होने दिया । अब करीब 500 सालों के इंतजार के बाद 2019 में सनातन की जीत हुई और 22 जनवरी 2024 के दिन से रामलला टेंट से निकलकर एक बार फिर से मंदिर में निवास कर रहे हैं । अगर आप अपने धर्म के प्रति वफादार हैं तो फिर बाबरी मस्जिद के निर्माण से लेकर फिर से राम मंदिर बनने तक के इस सफर को आपको जरूर जानना चाहिए ।

अयोध्या का राम मंदिर कब टूटा था? ~

27 अप्रैल 1526 ईस्वी में मुगल साम्राज्य की नींव बाबर द्वारा रखी गई । इसके कुछ समय बाद ही यानी 1528 में बाबर के आदेशानुसार बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में स्थित राम मंदिर को तुड़वा दिया गया और उसकी जगह पर एक मस्जिद बनवाई जिसका नाम बाबर के सम्मान में बाबरी मस्जिद रखा गया । अब मुगल काल में सिर्फ अयोध्या का राम मंदिर ही नहीं बल्कि हजारों मंदिर तोड़े गए थे, जिनके सबूत आज भी हमें देश के कोने कोने में देखने को मिल जाते हैं । पर उस समय बाबर ने विरोध की हर आवाज दबा दी और हिंदुओं को उनके ही देश में उन्हीं के भगवान से दूर रखा गया ।

राम मंदिर विवाद क्या है? ~

इस कहानी में मोङ उस समय आया जब साल 1813 के आसपास फैज़ाबाद के ब्रिटिश ऑफिसर ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें उन्होंने मस्जिद के अंदर हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियाँ मिलने का जिक्र किया था और इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने साल 1528 में राम मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनाई थी । इस तरह के दावे सामने आने के बाद हिंदू और मुस्लिमों के बीच नफरत की आग जलने लगी और साल 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, हालांकि इसके बाद भी हिंदू और मुस्लिम एक ही जगह पर पूजा और नमाज़ अदा किया करते थे । आप सोच रहे है ना कि आखिर कैसे? पूजा और नमाज़ एक ही जगह पर ~

अयोध्या राम मंदिर किसने बनवाया था और कब? ~

तो चलिए इसकी भी कहानी को हम आपको बताते हैं, सन् 1717 यानी कि बाबरी मस्जिद बनने के 190 साल के बाद जयपुर के राजा जयसिंह-॥ वो पहले शख्स थे जिन्होंने मस्जिद और उसके आसपास की जमीन को हासिल करने की कोशिश की थी जिससे कि वो एक बार फिर से वहाँ पर राम मंदिर बनवा पाए लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी राजा जयसिंह-॥ को कोई कामयाबी नहीं मिलती है । जिसके बाद वह मस्जिद के पास एक चबूतरा बनवा देते है और उस चबूतरे का नाम राम चबूतरा रखते हैं ताकि प्रभु श्रीराम में आस्था रखने वाले लोग उस चबूतरे पर पूजा कर सकें । अब जब साल 1855 में हिंदुओं को आंतरिक परिसर में जाने पर रोक लगा दी गई, जहाँ मुस्लिम नमाज़ अदा करते थे, तब हिंदू मस्जिद के बाहर बने इसी राम चबूतरे पर ही पूजा किया करते थे यह चबूतरा विवादित ढांचे के परिसर के अंदर मुख्य गुंबद से 150 फिट दूर बनाया गया था ।
इसके बाद आगे चलकर 1859 में ब्रिटिश सरकार ने इस विवादित जगह के बीच मे तार लगाकर दोनो जगहो को अलग कर दिया ताकि हिंदू और मुस्लिम शांति के साथ अलग अलग पूजा और नमाज़ अदा कर सकें । यह सब घटना साल 1859 में हुई थी, इस घटना के करीब 26 साल बाद यानी 1885 में राम जन्मभूमि की ये लड़ाई अदालत पहुंची जहाँ निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने फैज़ाबाद के न्यायालय में बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थाई मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की । जिस पर जज ने ये फैसला सुनाया कि वहाँ हिन्दुओं को पूजा अर्चना करने का तो अधिकार है लेकिन वो मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते हालांकि इसके कुछ दशक के बाद यानी 1934 में अयोध्या में एक बार फिर से दंगे होते हैं, जिसमें बाबरी मस्जिद का कुछ हिस्सा टूट जाता है । हालांकि बाद में इस हिस्से की पुन: मरम्मत करवा दि जाती है, लेकिन यह घटना होने के बाद से यहाँ नमाज़ बंद हो जाती है और दोस्तों ध्यान दीजिएगा यह वह समय था जब देश पर अंग्रेजों का राज़ हुआ करता था, लेकिन इसके बावजूद देश की जनता बाबरी मस्जिद बनने के 400 साल बाद भी अपने प्रभु के जन्म स्थली को पाने की लड़ाई लड़ रही थी । उस समय ना तो हमारी अपनी खुद की सरकार थी यानी अंग्रेजो की सरकार थी और ना ही मीडिया को इतनी आज़ादी थी कि वो इन मुद्दों को देश के हर नागरिक के सामने ला सके और तो और देश को चलाने वाली ब्रिटिश कांग्रेस ने भी इन मुद्दों से किनारा किया हुआ था । हाँ, अगर कोई चिंतित था तो वो थी देश की आम जनता जो कि अपनी जान की बाजी लगाकर अपने प्रभु के हक की लड़ाई लड़ रही थी । इसी तरह से समय बीतता जाता है और साल 1947 आता है जब देश को सालों की गुलामी के बाद अंग्रेजों से आजादी मिली थी । आजादी के साथ ही लोगों की ये उम्मीदें भी बढ़ जाती है कि अब तो राम मंदिर बनकर ही रहेगा, लेकिन उस समय की स्थिति तो कुछ और ही बयां कर रही थी । नेहरू वाली कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता इस मु्द्दे पर बात करना तो बहुत दूर की बात है उन्होंने तो इस मुददे को लेकर सीधे अपने हाथ खड़े कर दिए थे और दोस्तों फिर राजनीतिक सपोर्ट ना मिलने के बाद ही शुरू होता है । असली विवाद 23 दिसंबर 1949 की सुबह अचानक से चारों तरफ यह बात फैल जाती है कि विवादित ढांचे के अंदर भगवान श्री राम की मूर्तियां पायी गयी है । हिंदू पक्ष ये दबा करने लगते हैं कि बीती रात भगवान श्रीराम प्रकट हुए हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष यह आरोप लगाते हैं कि किसी ने रात के अंधेरे में चुपचाप वहाँ पर मूर्तियां रख दी है । अब जैसे इस बात की खबर चारों तरफ फैलती हैं, दोनों पक्षों के लोग मस्जिद परिसर में इकट्ठा हो जाते है । विवाद को बढ़ता हुआ देख उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जिला मजिस्ट्रेट केके नायर को चिट्ठी लिखकर ये आदेश देते हैं की मूर्ति को वहाँ से हटाया जाए और इस स्थिति को शांत किया जाए । लेकिन केके नायर दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में हाथ खड़ा कर देते हैं । केके नायर प्राइम मिनिस्टर नेहरू जी को जवाब में लिखते हैं कि अगर मंदिर से मूर्तियां हटाई गई तो इससे हालात बिगड़ जाएंगे और हिंसा भी बढ़ सकती है । लेकिन दोस्तों जब यह पत्र नेहरूजी तक पहुंचता है तब नेहरूजी k.k नायर के पत्र के जवाब में एक और पत्र लिखते हैं और फिर से राम जी की मूर्ति हटवाने की ही बात कहते हैं । लेकिन k.k नायर इस बार भी अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं और मूर्ति को हटाने से साफ इनकार कर देते हैं । इस घटना के 7 दिन बाद ही फैज़ाबाद कोर्ट के द्वारा बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित करके इसके मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया जाता है । इसके बाद से 1950 में फैज़ाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई, जिसमें एक में रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखने की इजाजत मांगी गई । हालांकि 9 साल के बाद तीसरी अर्जी भी 1959 में दाखिल हुई, जिसमें निर्मोही अखाड़ा ने विवादित जगह पर मालिकाना हक जताया था । लेकिन फिर इस अर्जी के 2 साल बाद यानी 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद के आसपास की जमीन पर अपना हक जताया । यह क्रम लगातार चलता रहा कभी हिंदू पक्ष तो कभी मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन को अपने अधिकार में लेने के लिए तरह तरह के दावे करते रहे । लेकिन इसके बाद 1980 में बीजेपी के गठन के बाद पार्टी ने खुलकर राम मंदिर आंदोलन का मोर्चा सम्भाला, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने भी राम मंदिर की लड़ाई को तेज कर दिया था । राम जन्मभूमि को आजाद करवाने और उस पर लगा ताला खुलवाने के लिए 24 सितंबर 1984 को बिहार के सीतामढ़ी से राम जानकी रथ यात्रा शुरू हुई । जिसमें हजारों लोग इस यात्रा के साथ जुड़े, 7 अक्टूबर 1984 को यह यात्रा अयोध्या पहुंची जहाँ सरयू नदी के तट पर लाखों लोग इकट्ठा हुए । वहाँ पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का संकल्प लिया गया और फिर यात्रा लखनऊ होते हुए दिल्ली के लिए निकल गई । दरअसल इस यात्रा में 31 अक्टूबर 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में संतों को जुङना था और यही इस यात्रा का समापन भी होना था । लेकिन उसी दिन सुबह सुबह प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई और रथ यात्रा को बीच में ही खत्म करना पड़ा । इसके बाद 1985 का साल आता है जब राम मंदिर लड़ाई को एक नई दिशा मिलती है, दरअसल इसी साल शाह बानो नाम की एक मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक मिलने के बाद गुज़ारा भत्ता के लिए कोर्ट पहुंचती है जहाँ कोर्ट उसके पक्ष में ही फैसला सुना देती है । अब इस फैसले से मुस्लिम समुदाय नाराज हो जाता है और दोस्तों इस कम्युनिटी के लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने 1986 में संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट देते हैं । असल में राजीव गाँधी 1989 के चुनाव के लिए ये सब कुछ कर रहे थे ताकि उन्हें मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी वोट मिल सके, हालांकि राजीव गाँधी की शर्मनाक कदम से नाराज होकर उन पर मुस्लिम कम्युनिटी को खुश करने का आरोप लगाते हैं । जिसके बाद इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए राजीव गाँधी एक और ऐतिहासिक भूल करते हैं और ये भूल होती है हिंदुओं की मांग को मानने की जिसके लिए वो 1986 में ही 37 सालों से बंद अयोध्या की विवादित बाबरी ढांचे का ताला खुलवा देते हैं जिससे कि वहाँ फिर से पूजा अर्चना शुरू हो जाती है । अब देखिये फिर से यहाँ मुस्लिम कम्युनिटी राजीव गाँधी के इस फैसले से नाराज हो जाती है और 6 फरवरी 1986 को बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी का गठन किया जाता है । अब इसके बाद से आता है 1990 का साल जब 25 सितंबर को लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर के इस आंदोलन को बीजेपी का आंदोलन बताते हुए सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10 हजार किलोमीटर की रथयात्रा निकालते हैं और दोस्तों इस रथ यात्रा के दौरान बिहार में लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है और रथयात्रा पर यहीं रोक लगा दी जाती है । लेकिन असल में जिस दिन यह यात्रा खत्म होनी थी यानी की 30 अक्टूबर 1990 को हजारों कार सेवक अयोध्या में जमा हो जाते हैं (कार सेवक का मतलब उन लोगों से है जो निस्वार्थ भावना से सेवा करते हैं और धर्म की रक्षा के लिए कदम उठाते हैं ) अब 30 अक्टूबर को भी कार सेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचे पर झंडा फहरा देते हैं । हालांकि पुलिस कारसेवकों को रोकने की बहुत कोशिश करती है तथा वहा कर्फ्यू भी लगा दिया जाता है, लेकिन जब इससे कोई फायदा नहीं होता तब भीड़ पर काबू पाने के लिए उस समय यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे देते हैं । जिससे कई सारे कारसेवक मारे जाते हैं । दावा किया जाता है कि पुलिस की इस गोलीबारी में 55 रामभक्त मारे गए थे, जबकि यूपी पुलिस 17 कारसेवकों के मारे जाने की ही बात को मानती हैं । इसके बाद आता है 6 दिसंबर 1992 की तारीख उस समय पी वी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री व कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे । इसी दिन 2 लाख कारसेवक विवादित ढांचे के पास इकट्ठा हो जाते हैं और दोस्तों कहा जाता है की कार सेवकों की अयोध्या पहुंचने से पहले ही कल्याण सिंह कोर्ट को यह भरोसा दिला चूके थे कि इस विवादित ढांचे को कोई हानि नहीं होने देंगे । दोस्तों ये भी खबर मिलती है की कल्याण सिंह ने पुलिस को यह आदेश दिया हुआ था की चाहे कुछ भी हो जाये तो भीड़ पर गोली नहीं चलाएगी, वहीं दूसरी तरफ हजारों कारसेवक जो 6 दिसंबर 1992 की सुबह विवादित ढांचे के पास खड़े थे, वो दोपहर तक ढांचे के ऊपर चढ़ जाते हैं और 1:55 पर विवादित ढांचे की एक गुंबद को गिरा देते हैं और फिर डेढ़ घंटे बाद यानी करीब 3:30 बजे वो दूसरा गुंबद भी गिरा देते हैं और फिर शाम के करीब 5:00 बजे तक वो तीनों गुंबदो को गिरा देते हैं जिससे कि पूरे यूपी में हाहाकार मच जाता है और स्थिति को काबू में करने के लिए यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है । ढांचा गिराए जाने के कुछ ही घंटों के बाद से कल्याण सिंह जी यूपी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं लेकिन उस समय उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि इस बात का उन्हें कोई मलाल नही है । 
कल्याण सिंह जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को स्वच्छा से त्याग दे देते हैं । दोस्तों ने इस बात को उन्होंने 2019 में खुद स्वीकार किया था क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर पर फैसला आया तब एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कल्याण सिंह ने कहा था की उस समय मेरा मुख्यमंत्री पद को त्यागना व बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने का मलाल ना तो तब था और ना अब है, राम मंदिर बनने के फैसले से मैं इतना खुश हूँ । लेकिन 90 के दशक में जब वापस से बीजेपी की सरकार बनी तब एक बार फिर से देश में राम मंदिर की लड़ाई तेज हो गई। बीजेपी ने 1999, 2004 और फिर आगे जीतने भी चुनाव हुए। उसमें राम मंदिर को अपने घोषणापत्र में शामिल किया और इस दौरान एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ट्रस्ट बनाकर विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने की स्वीकृति दे देती है और साथ ही वह मस्जिद के लिए भी एक वैकल्पिक जमीन देने का आदेश देती है । जिसके बाद से 5 फरवरी 2020 को ट्रस्ट का गठन किया जाता है और फिर से राम मंदिर बनना प्रारम्भ हो जाता है ।


जय श्रीराम जी की ।

जय सनातन धर्म की ।

जय हिंदुत्व की ।

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