अदालत मे कुछ भी बोलने या कहने से पहले भगवद्गीता की शपथ क्यो दिलाई जाती है/Why is an oath taken on Bhagawad Gita before speaking or saying anything in the court?

भगवद्गीता
भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ क्यो दिलाते है




अदालत मे भगवद्गीता की शपथ क्यो दिलाई जाती है ~

  मित्रों, आपने देखा या सुना होगा कि जब भी किसी को अदालत में पेश किया जाता है तो उसके कुछ भी बोलने या कहने से पहले उसे भगवद्गीता की शपथ दिलाई जाती है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है हिंदू धर्म ग्रंथों में गीता के अलावा भी कई पवित्र पुराण और वेद होते हुए भी गीता की ही शपथ क्यों दिलाई जाती है । चलिए हम आपको बताते हैं, नमस्कार दोस्तो Chandraoudai पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु अर्थात भगवान श्री हरि मुर नाम के दैत्य का वध करने के बाद अपने शेषनाग की सय्या  पर आंखें मूंदकर लेटे हुए थे और माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही थी । तभी माता लक्ष्मीजी ने देखा कि श्रीहरि मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं यह देख देवी लक्ष्मीजी के मन में कई सवाल उठने लगे, लेकिन वह श्री हरी को ध्यान से जगाना नहीं चाहती थी परंतु जब काफी देर तक श्रीहरी मुस्कुराते रहे तो देवी लक्ष्मी से रहा नहीं गया और उन्होंने अपने स्वामी से पूछ ही लिया हे स्वामी आप तो सारे जगत के पालनहार हैं फिर भी सारे जगत की ओर मुख मोड़कर यहाँ शिर सागर में सोए हुए हैं । इसका क्या कारण है, देवी लक्ष्मी की बातें सुनकर श्री हरी मुस्कुराते हुए बोले हे देवी मैं सो नहीं रहा हूँ बल्कि अपने अंतर्दृष्टि से अपने उस दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार कर रहा हूँ जिसका योगीजन अपने दिव्य दृष्टि से दर्शन करते हैं । हे देवी मेरी जिस शक्ति के अधीन यह पूरी सृष्टि है उसका जब मैं अपने अंतर्मन से दर्शन करता हूँ तो आपको ऐसा लगता है कि मैं सो रहा हूँ, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हैं । भगवान श्री हरि की बातें सुनकर देवी मन ही मन सोचने लगी कि आखिर उन्होंने क्या कहा क्योंकि देवी लक्ष्मी को अपने स्वामी की पूरी बातें समझ में नहीं आयी इसीलिए उन्होंने पुनः भगवान विष्णु से प्रश्न किया कि स्वामी इसका अर्थ यह हुआ कि आपके इस शक्ति के अलावा भी कोई शक्ति है जिसका आप ध्यान करते हैं, तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी से बोले हे देवी मेरी शक्ति को समझने के लिए आपको गीता के रहस्यों को समझना होगा । मैंने कृष्ण अवतार में जो अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था, उसके समस्त अध्यायो में मेरे उस शरीर के समस्त अंग हैं जिनकी आप दिन रात सेवा करती हैं ।


गीता के सभी 18 अध्यायो मे भगवान श्रीहरि के सभी अंगो का वर्णन ~

卐 गीता के एक से लेकर पांचवें अध्याय तक मेरे पांच मुखों का वर्णन है । 

卐 अध्याय छः से अध्याय 15 तक मेरी/श्रीहरि के 10 भुजाओं का वर्णन है ।

 卐 सोलवे अध्याय में मेरा/श्रीहरि उधर अर्थात मेरी पीठ समाहित है जहाँ शुदा शांत होती है । 

卐 अंतिम के दो अध्याय अर्थात 17 वें और 18 वें अध्याय में मेरे दोनों चरण कमल का वर्णन है ।  

अपने स्वामी के मुख से गीता के बारे में ऐसी बातें सुनकर माता लक्ष्मी उलझन में पड़ गई उनका मुख्य संशय से भर गया । यह देख भगवान श्रीहरि समझ गया कि देवी लक्ष्मी को मेरी बातें पूर्ण ता समझ में नहीं आयी है । फिर भी उन्होंने कहा, देवी जो भी मनुष्य गीता के एक अध्याय का श्लोक प्रतिदिन पड़ता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है । यह सुन माता लक्ष्मी बोली हे स्वामी, आपकी ये बातें मुझे और भी उलझती जा रही है मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है इसलिए इसे सरल भाव से कहने की कृपा करिए । तब भगवान विष्णु मुस्कुराते हुए बोले, देवी अब मैं आपको एक कथा सुनाने जा रहा हूँ, जिसके बाद आपकी सारी उलझनें दूर हो जाएंगी । भगवान विष्णु आगे बोले हे देवी किसी काल में सुशर्मा नाम का एक घोर पापी मनुष्य हुआ करता था । वह हमेशा भोग विलास में ही लगा रहता था, 1 दिन सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी आत्मा को यमदूत नर्क लोक ले गए । जहाँ उसने सैकड़ों साल तक कई तरह की यातनाएं झेलीं, फिर उसका जन्म बैल की योनि में हुआ । बैल की योनी में वह अपने मालिक की खूब सेवा किया करता था परन्तु उसे भोजन कम मिलता और उसे परिश्रम ज्यादा करना पड़ता था जिसकी वजह से कुछ सालों बाद वह 1 दिन मूर्छित होकर गिर गया और फिर कभी नहीं उठा अर्थात उसकी मृत्यु हो गई । बैल को मूर्छित हुआ देख वहाँ बहुत से लोग जमा हो गए और बैल की आत्मा की शांति के लिए अपने हिस्से के पुण्य उसे दान करने लगे । भाग्यवश उस भीड़ में एक वेश्या भी खड़ी थी और लोगों को बैल के लिए पुण्य दान करता हुआ देख वह भी बोल उठीं हे भगवान मेरे हिस्से में जो भी पुण्य है, मैं इस बैल को दान करती हूँ । फिर कुछ समय बाद जब बैल की आत्मा को उसके पुण्य का लेखा जोखा होने लगा, लेखा जोखा करते वक्त यम लोक में जब सभी को पता चला कि इस बैल के हिस्से में सबसे अधिक हिस्सा एक वेश्या का है तो किसी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और फिर वेश्या के पुण्य के कारण की आत्मा को उसी समय नरक लोक से मुक्ति मिल गई । इतना ही नहीं वेश्या के पुण्यफल के कारण ही बैल की आत्मा को उसी समय मनुष्य योनी में जन्म देकर पृथ्वी लोक पर भेजने का निर्णय लिया गया । फिर उसके पुण्य को देखते हुए विधाता ने उससे मृत्युलोक में जाने से पहले उसकी इच्छा पूछी तब बैल की आत्मा ने कहा, हे ईश्वर आप मुझे मनुष्य के रूप में मृत्युलोक में भेज रहे हैं ये तो मेरा भाग्य है किंतु ये भी सच है कि मनुष्य ही मृत्युलोक में सबसे ज्यादा पाप कर्म करता है इसलिए मैं ये चाहता हूँ कि मेरे मृत्युलोक में जाने के बाद भी मुझे अपने पूर्वजन्म की बात याद रहे, बैल रूपी आत्मा की बात परमात्मा ने मान ली और उसे मनुष्य रूप में पृथ्वी लोक पर भेज दिया । पृथ्वी लोक पर जन्म लेने के बाद उसने सबसे पहले उस वेश्या को खोजना शुरू किया जिसके पुण्य की वजह से उसे मनुष्य योनि में जन्म मिला था फिर 1 दिन उसने उस वेश्या को खोज लिया । उसने वेश्या को सारी बातें बताई और सवाल किया हे देवी वैसे तो समाज की नजर में आपके कर्म नीच माने जाते हैं, परंतु आप ने ऐसा कौन सा कर्म किया था जिससे मुझे अपने पूर्व जन्म में किए गए पापों से मुक्ति मिली । तब वेश्या ने पिंजरे में बंद अपने तोते की ओर इशारा करते हुए कहा, यह तोता नित्य प्रातः काल में कुछ पढ़ता है जिसे सुनकर मेरा मन पवित्र हो जाता है और यही पुण्य मैंने तुम्हें दान कर दिया था । वेश्या की बातें सुनकर सुशर्मा हैरान हो गया वह मन ही मन सोचने लगा कि जिस स्त्री ने मुझे अपना सबसे कीमती पुण्य दान दे दिया, उसे पता ही नहीं कि वह पुण्य कितना प्रभावी है फिर कुछ क्षण पश्चात उसने तोते को प्रणाम किया और पूछा कि है शाक आप ऐसा क्या पढ़ते हैं जो इतना पुण्य फलदायी है । सब तोते ने कहा है युवक में पूर्व जन्मे विद्वान होने के बावजूद भी अहंकारी हुआ करता था और सभी से ईष्या भी करता था, इतना ही नहीं बात बात पर मैं विद्वानों को अपमानित भी किया करता था, फिर जब मेरी मृत्यु हुई तो मेरे इन कर्मों के कारण मुझे तोते की योनी में जन्म मिला लेकिन मेरे जन्म लेते ही मेरे माता पिता मर गए । लेकिन उसी समय कुछ ऋषिमुनी वहाँ से गुजर रहे थे मुझे अपने साथ उठाकर आश्रम ले आए और मुझे पिंजरे में बंद कर दिया । आश्रम में ऋषिगण अपने शिष्यों को रोज़ गीता का पाठ कराया करते थे, जिसे सुनकर मैंने गीता का प्रथम अध्याय याद कर लिया परंतु अन्य अध्याय सीख पाता उससे पहले ही एक बहेलिये ने मुझे चुराकर इस देवी को बेच दिया और मैं प्रतिदिन गीता के प्रथम अध्याय का क्ष्लोक इस देवी को सुनाता रहता हूँ वही पुण्य इन्होंने आपको दान किया । इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा देवी अब तो आपको समझ आ ही गया होगा, कैसे जो मनुष्य गीता का प्रथम अध्याय पढ़ता या सुनता है उसे भवसागर पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती । मित्रों जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि गीता के सभी अध्याय में भगवान विष्णु के सभी अंग समाहित है और ऐसे में जो भी मनुष्य गीता को स्पर्श करता है इसका अर्थ ये हुआ कि वह श्री नारायण के सभी अंगों स्पर्श कर रहा है इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो भी गीता को स्पर्श कर कोई बात बोलता है वह सत्य ही बोलेगा और यही कारण है कि अदालत में गीता की सौगंध दिलाई जाती है तो मित्रों उम्मीद करता हूँ कि गीता की शपथ से जुड़ी ये कथा आपको पसंद आई होगी ।

जय हरि विष्णु की ।

जय माँ लक्ष्मी जी की । 

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