पवित्र कार्तिक माह की कथा-8 तारा भोज की कहानी/Story of Pavitra Kartik month-8 Story of Tara Bhojan

  

कार्तिक माह

कार्तिक माह की कथा-8 तारा भोज


 तारा भोज, मंझली बहू की कहानी ~

 आज हम आपके लिए कार्तिक माह की तारा भोज की कहानी लेकर आए हैं । एक समय की बात है, किसी नगर में एक संपन्न साहूकार रहता था, उसके भरा पूरा परिवार था। तीन बेटे, बहू, पोते, पोती, बेटी, जंवाई, नाती, नातिन आदि सभी बहुत खुश थे । एक समय कार्तिक माह में साहूकार की मंझली बहू ने तारा भोज का निश्चय किया, उसने तारा भोज की कहानी अपनी सास को सुनने के लिए कहा तो सास ने मना कर दिया और बोलीं मुझे अभी मंदिर जाना है, पूजा पाठ करना है । उसने अपनी जेठानी से कहा आप मेरी कहानी सुन लो तो जेठानी ने भी मना कर दिया और बोलीं मुझे अभी खाना बनाना है । अब वो अपनी देवरानी से बोली तुम तो मेरी कहानी सुन लो तो देवरानी ने बहाना बना दिया की बच्चो को देखना है । फिर उसने अपनी ननद से कहानी सुनने को कहा तो ननद में भी मना कर दिया और बोली मेरे ससुराल से बुलावा आया है, मुझे जाना है अब बहु बड़ी परेशान हुईं करें तो क्या करे? साहूकार का घर राजा के महल के पास था । बहु राजा के पास गईं और बोलीं आप मेरी कहानी सुन ले तो राजा बोला मुझे व्यापार देखना है, देश चलाना है । साहूकार की बहू निराश हुई और घर की तरफ लौट चलीं । रास्ते में उसे अपनी पड़ोसन दिखी, जो पानी भरकर वापस आ रही थी । बहु पड़ोसन से बोली आप मेरी कहानी सुन लो तो पड़ोसन कहानी सुनने को तैयार हो गई । बहू और पड़ोसन ने मिलकर पूजा अर्चना करी कहानी सुनी और आरती करी । पूरा महीना दोनों ने मिलकर  यही नियम किया । बहू का कार्तिक माह का तारा भोज का नियम पूरा हुआ, जिसदिन उसे व्रत का उद्यापन करना था, वहीं दिन दैव्ययोग से उसकी जिंदगी का अंतिम दिन था । भगवान ने उसे लेने के लिए स्वर्ग से विमान भेजा । स्वर्ग से आया विमान देखकर उसकी सास भागकर चढ़ने लगी, लेकिन बहू ने मना कर दिया और बोली माता जी अभी आपको पूजा पाठ करनी है । फिर जेठानी आई और विमान पर चढ़ने लगी, उसने जेठानी को भी मना कर दिया और कहा आप कैसे चढ़ोगी आपको तो अभी खाना बनाना है । देवरानी आयी तो उसने देवरानी को भी मना कर दिया कहा जाओ तुम अपने बच्चे संभालो । ननद आयी तो वह बोली आपको ससुराल जाने की तैयारी करनी है, आप तैयारी करे । ये सब देखकर नगर का राजा भी वहाँ आया और बोला मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ लेकिन बहु बोली आपको तो राजपाट संभालना है, आप वही संभालिए । आखिर में पड़ोसन आई और बोली बहन मैं चलती हूँ तुम्हारे साथ बहु बोली हाँ तुम मेरे साथ चलो, क्योंकि एक तुम्हीं हो जिसने कार्तिक के माह में मेरी तारा भोज की कहानी सुनी है । दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग की ओर चलते हैं तभी रास्ते में बहु को अभिमान हो जाता है और वो सोचती है मैंने कार्तिक का पूरा व्रत किया, कहानी कही इसलिए मुझे स्वर्ग का वास मिला है । पर इसने तो कुछ भी नहीं किया, सिर्फ कहानी सुनी है, फिर मेरी वजह से इसे स्वर्ग का वास मिल रहा है । बहु मन में ऐसा सोच ही रही थी कि अचानक भगवान ने उसे विमान से नीचे फेंक दिया । उसने पूछा भगवान मेरा अपराध तो बता दीजिये आपने ऐसा क्यों किया तो भगवान बोले तुझे अभिमान हो गया है इसलिए तू धरती पर ही रहें, आने वाले 3 साल तक तो लगातार तारा भोज व्रत करेगी तभी तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी और भगवान पड़ोसन को स्वर्ग ले गए, क्योंकि पड़ोसन ने बिना स्वार्थ के पूजा पाठ सच्चे दिल से किया था । अब बहु को अपनी भूल का एहसास हो गया । उसने फिर कार्तिक के महीने में तारा भोज का व्रत और पूजन पूरे 3 साल तक किया और अपने किए की भगवान से माफी मांगी । तीसरे साल फिर से विमान आया और इस बार बहू को अपने साथ ले गया । 

हे कार्तिक देवता इस कहानी को कहते सुनते और हुंकार भरते सब पर कृपा करना ।

जय कार्तिक महाराज ।

जय भगवान विष्णु की ।

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