भगवान शिव के भस्म रमाने से लेकर हाथ में त्रिशूल तक की वेश-भूषा के पीछे वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण/scientific and spiritual reasons behind Lord Shiva's attire from applying ash to the trident in his hand

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भगवान शिव की वेश-भूषा


भगवान शिव की वेश-भूषा के पीछे वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण ~

  भगवान शिव जितने रहस्यमयी है उनकी वेश भूषा व उनसे जुड़े तथ्य उतने ही विचित्र हैं । शिव श्मशान में निवास करते हैं, गले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहण करते हैं, न जाने कितने रोचक तथ्य इनके साथ जुड़े हैं । भगवान शिव से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातें व इनमें छिपे लाइफ मैनेजमेंट के सूत्रों के बारे में आइए जानते हैं 

 जाने भगवान शिव जी/भोलेनाथ की तीन आंखें क्यों हैं/know Why does Lord Shiva/Bholenath have three eyes? ~ 

 धर्म ग्रंथों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं, लेकिन एकमात्र शिव ही ऐसे देवता हैं जिनकी तीन आंखें हैं । तीन आँखों वाला होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं । लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो शिव का तीसरा नेत्र प्रतीकात्मक है, आँखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना । जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं जिन्हें हम समझ नहीं पाते, ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही गलत की पहचान कराता है । अतः प्रेरणा के रूप में  यह विवेक हमारे अंदर ही रहता है बस जरूरत है उसे जगाने की । भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र का स्थान है । यह आज्ञा चक्र ही विवेक बुद्धि का स्रोत है, यही हमें विपरीत परिस्थिति में सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है । 


भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं/Why does Lord Shiva apply ashes on his body? ~ 

हमारे धर्म शास्त्रों में जहाँ सभी देवी देवताओं को वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है, वहीं भगवान शंकर को सिर्फ बाघ चर्म की खाल लपेटे और भस्म लगाए बताया गया है । भस्म शिव का प्रमुख वस्त्र भी है क्योंकि शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है । 


शिव का भस्म रमने के पीछे वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण/Scientific and spiritual reason behind Shiva's ashes being smeared on his body ~

 भस्म की एक विशेषता होती है की यह शरीर के रोमछिद्रों को बंद कर देती है, इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती । भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्म धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते है की परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण हैं । 


जाने भगवान शिव जी/भोलेनाथ के हाथ में त्रिशूल क्यों है/Know why Lord Shiva/Bholenath has a trident in his hand? 

त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख आयुध है। हालाँकि, आप इसमें तीन नुकीले सिरे देख सकते हैं, यदि आप त्रिशूल के प्रतीक को देखें। यद्यपि यह आयुध विनाश का प्रतीक है, वास्तव में यह एक बहुत अच्छी बात बताता है, संसार में तीन प्रकार की प्रवृत्तियाँ हैं, सत, रज और तम। सत का अर्थ है सात्विक, रज का अर्थ है सांसारिक और तम का अर्थ है तामसी यानी निशाचर प्रवृत्ति। ये तीनों प्रवृत्तियाँ प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान हैं, केवल अंतर यह है कि इनके आयतन में अंतर है। त्रिशूल के तीन पुनर्केंद्रित सिरे इन तीन प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि हमें इन दरों पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए। इस त्रिशूल को तभी उठाना चाहिए जब कोई कठिनाई हो, केवल इन तीनों दरों का उपयोग आवश्यकता के अनुसार ही करना चाहिए।

भगवान शिव जी/शंकर ने क्यों पिया विष/जहर/Why did Lord Shiv/Shankar drink poison? ~

 देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले जहर/विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। विष/जहर के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से कुख्यात हुए। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मंथन करो, अपनी विद्याओं को मंथन करो, मन में असंख्य विद्याएं और वासनाएं हैं, उन्हें मंथन करो और अच्छी विद्याओं का धारण कर लो। जब हम अपने मन का मंथन करेंगे तो सबसे पहले जो चीज निकलेगी वो है बुरी विद्याएं। ये विष/जहर है, विष/जहर गलत का प्रतीक है। शिव ने इसे अपने कंठ में धारण कर लिया और इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव द्वारा बाण/जहर पीना हमें संदेश देता है कि हमें अनैतिकताओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए, हमें हर कदम पर अनैतिकताओं का सामना करना चाहिए। शिव द्वारा बाण पीना हमें यह भी शिक्षा देता है

भगवान शिव जी के माथे पर चंद्रमा क्यों सुशोभित है/Why is the moon decorated on the forehead of Lord Shiva? ~

 भगवान शिव का एक वर्णित नाम भालचंद्र है। भालचंद्र का अर्थ है जिसके माथे पर चंद्रमा हो। चंद्रमा का स्वभाव ठंडा होता है। चंद्रमा की तीलियां भी शीतलता प्रदान करती हैं। जीवन संचालन की दृष्टि से भगवान शिव कहते हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए, मन को हमेशा शांत रखना चाहिए। हालांकि, अगर मन शांत रहेगा तो बड़ी से बड़ी समस्या का परिणाम भी निकल आएगा। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। मन का स्वभाव बहुत ही चंचल होता है। भगवान शिव द्वारा चंद्रमा धारण करने का अर्थ है कि मन को हमेशा काबू में रखना चाहिए। हालांकि, बात नहीं बनेगी, जिसने मन को काबू में कर लिया है, वह अपने जीवन में सबसे नाजुक काम भी आसानी से कर सकता है, अगर मन भटकता है।

हर हर महादेव ।

जय भोलेनाथ की ।

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