पवित्र कार्तिक मास की कथा - 9 तारा भोज की कहानी 2nd/Story of the Pavitra month of Kartik - Second story of 9 Tara Bhoj

 

कार्तिक मास

कार्तिक मास की कथा - 9 तारा भोज की कहानी

 तारा भोज और राजा की बेटी  की कहानी 2nd ~ 

 आज हम आपके लिए कार्तिक मास की तारा भोज की दूसरी कहानी लेकर आए हैं । एक समय की बात है एक राजा था, उसके एक बेटी थी । राजा हर साल कार्तिक माह का व्रत और स्नान आदि करता था । एक समय राजा की बेटी ने कहा, पिताजी, इस बार कार्तिक स्नान में हम तारा भोज का व्रत करेंगे । राजा बोला ठीक है, राजा की बेटी ने पूरे श्रद्धा भाव से तारा भोज का व्रत किया । जब कार्तिक का महीना पूरा होने को आया तो उसने अपने पिता से कहा, पिताजी मैंने तारा भोजन किया है, इसलिए अब मैं 9 लाख चांदी के तारों का दान करूँगी । राजा ने कहा ठीक है, उसने उसी समय सुनार को बुलाया और कहा राजकुमारी ने कार्तिक माह में तारा भोजन किया है, अब तुम उसके लिए 9 लाख तारे बनाकर दो जिसका वो दान करेगी । सुनार ने राजा को हाँ कर दी लेकिन घर  आकर वो सोच में पड़ गया । उसकी पत्नी ने पूछा क्या बात है आप इतनी चिंता में क्यों हो, तब वह सुनार बोला राजा ने मुझे 9 लाख तारे बनाने को कहा है, इतनी जल्दी मैं तारे बनाकर कैसे दूंगा और मुझे तो तारे बनाने भी नहीं आते, सुनहर की पत्नी ने कहा इसमें सोचने की क्या बात है गोल चांदी का पत्रा बनाकर उसमें से छोटे छोटे गोल टुकड़े काट देना, तारे बन जाएंगे और राजा को दे आना । सुनार ने ऐसा ही किया उसने पत्रे से तारे काटकर राजा को दे दिए । राजकुमारी ने 9 लाख तारों का दान किया । ऐसा होते देख भगवान का सिंहासन डोलने लगा भगवान हरि ने अपने दूतों से कहा जाओ और जाकर देखो, कौन धर्मात्मा मेरे नाम पर टिका हुआ है दूतों ने पृथ्वी पर आकर देखा तो राजकुमारी चांदी के तारे दान कर रही थी । यह देखकर वो ठाकुरजी को जाकर बोले प्रभु राजा की लड़की नेम धर्म से तारा भोजन कर रही है । भगवान ने कहा उसे मेरे विमान पर बैठाकर बैकुंठ लोक में ले आओ । भगवान के दूत राजकुमारी को लेने पहुंचे और बोले भगवान हरि ने तुम्हें बैकुण्ठ में बुलाया है । राजकुमारी बोली मैं ऐसे नहीं जाउंगी जिस जिसने मेरी सहायता की है, सबको साथ लेकर जाउंगी । दूत एक बड़ा सा विमान लेकर आये और सबको लेकर चले, रास्ते में उस लड़की के मन में अभिमान हुआ कि मेरे तारा भोज करने से सब को बैकुंठ लोक की प्राप्ति हो रही है । ऐसा अभिमान देख दूतों ने उसे विमान से नीचे उतार दिया और कहा तुम्हें अभिमान हो गया है इसलिए अब तुम यही पर रहो और वह दूत बाकी सब को लेकर श्रीहरि के पास पहुँच गए । भगवान ने पूछा इनमें से तारा भोज करने वाला कौन है तो दूतों ने कहा प्रभु उसमें अभिमान का भाव आ गया था, इसलिए हम उसे वही पृथ्वी लोक पर छोड़ आये  और जिन्होंने कार्तिक व्रत में उसकी सहायता की थी, उन्हें हम यहाँ ले आए । राजकुमारी ने भगवान श्री हरि से क्षमा याचना करी, भगवान ने कहा अभिमान के कारण तुम्हारे अच्छे कर्मों का फल निष्फल हो गया । अब तुम फिर से श्रद्धापूर्वक तारा भोजन करो, कार्तिक स्नान करो, तब तुम्हें बैकुंठ की प्राप्ति होगी । अगले वर्ष उसने फिर से श्रद्धापूर्वक कार्तिक स्नान में तारा भोजन व्रत किया । भगवान के दूत आये और उसे लेकर बैकुंठ लोक को चले गए हें । श्री हरि विष्णु भगवान जैसे राजा की लड़की के साथ पहले किया वैसा किसी के साथ मत करना और जैसे बाद में उस पर कृपा करि वैसे ही इस कहानी को कहते सुनते और हुंकार भरते सब पर कृपा करना । 

जय श्री हरि विष्णु की ।

जय कार्तिक महाराज की ।

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