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गुरुवार व्रत क्यों किया जाता हैं |
Guruvar Vrat:- जाने गुरुवार व्रत करने से ग्रहस्थ जीवन मे क्या क्या लाभ मिलता हैं ओर साथ ही जाने इस व्रत के नियम/Know what benefits do you get in family life by observing Thursday fast and also know the rules of this fast ~
प्राचीन काल की बात है । किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज़ करता था । वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं भूखे और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करता था, परन्तु ये बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी । वह न तो व्रत रखती थी, न ही दान-पुण्य करती थी और राजा को भी दान-पुण्य करने से मना करती थी। एक बार की बात है, राजा जंगल में खोज करने गया। घर पर रानी और दासी थी, उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आये । साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी ये साधु महाराज मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गयी हूँ, आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूँ? बृहस्पति देव ने कहा, हे देवी तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगावो लड़कियों की शादी करवा दो, मदरसे और सभागार बनवा दो । जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें । परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई । लेकिन रानी साधु की इन बातों से खुश नहीं हुई। रानी ने कहा कि मुझे इतने बड़े धनपति की ज़रूरत नहीं है। जिसको मैं दान दू और इसे संभालने में मेरा सारा समय व्यर्थ हो जाये । तब संत ने कहा, यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो भी जैसा मैं कहता हूं वैसा करो। गुरुवार को तुम घर को गाय का जो गोबर होता हे उससे लीपना, अपने बालों को कुरूप बनाकर धोना, बालों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनवाने को कहना, भोजन में मांस और मदिरा खाना, अपने कपड़े धोबी को धुलने के लिए देना। ऐसा सात गुरुवार तक करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। ऐसा कहकर संत वेशधारी बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए। संत की बात का पालन करते हुए अभी तीन गुरुवार ही बीते थे कि रानी का सारा धन नष्ट हो गया, राजा का परिवार भोजन के लिए तरसने लगा। तब 1 दिन राजा ने रानी से बोला की हे रानी तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश जाता हूँ क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते है इसलिए मे कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता । ऐसा कहकर राजा प्रदेश चला गया । वहाँ वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता, इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा । इधर राजा के प्रदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगे । पूर्वकाल में जब रानी और उसकी दासी को 7 दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा- हे दासी, मेरी बहन निकट ही एक महानगर में रहती है, बड़ी धनवान है तो उसके पास जा और कुछ लिया ताकि थोड़ी बहुत गुजर बसर हो जाये । दासी रानी की बहन के पास गई, उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय गुरुवार की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी का संदेश रानी की बहन को दिया, परन्तु रानी की बड़ी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया। जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वो बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया । दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बताई, यह सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर रानी की बहन ने मन मे विचार किया कि मेरी बहन की दासी आई थी, लेकिन मैंने उससे बात नहीं की, इससे वह सचमुच दुखी होगी । कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, है बहन मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है तब तक ना तो उठते हैं और ना ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली । बताओ दासी क्यों आई थी। रानी बोली, "बहन", आपसे क्या छिपाऊं? हमारे घर में तो खाने को अनाज भी नहीं था।" यह कहते-कहते रानी की आंखें भर आईं। उसने दासी के साथ पिछले सात दिनों से खाली पेट रहने की रानी ने सारी कहानी विस्तार से अपनी बहन को बताई। रानी की बहन ने कहा, देखो, शायद तुम्हारे घर में कुछ अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन अपनी बहन के कहने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा और उसने सचमुच अनाज से भरा एक बर्तन रखा हुआ पाया। ये देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई, दासी रानी से कहने लगी हे रानी जब हम को भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं इसलिए क्यों ना हमें उनसे व्रत की विधि और कथा के बारे में पूछना चाहिए ताकि हम भी व्रत रख सकें। इसके अलावा रानी ने अपनी बहन से गुरुवार की पूर्व संध्या व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करे तथा दीपक जलाये, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें, इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं । व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई । 7 दिन के बाद जब गुरुवार आया रानी और दासी ने व्रत रखा, घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आयी, फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया । अब पीला भोजन कहाँ से आये इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे क्योंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे । इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गये । भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया, उसके बाद में सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी । बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन सम्पत्ति आ गयी परन्तु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी । तब दासी बोली देखो रानी तुम पहले भी इस प्रकार आलस करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है। रानी को समझाते हुए दासी कहती है की बड़ी मुसीबतों के बाद हमने ये धन-वैभव पाया है अतः हमें दान-पुण्य करना चाहिए। भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए तथा शुभ कर्म में धन खर्च करना चाहिए जिससे आपके कुल का यश बढ़ेगा। स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे । दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगे जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा । गुरुवार को व्रत कथा के बाद भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए, तत्पश्चात प्रसाद वितरित कर ग्रहण करना चाहिए।
जय बृहस्पति जी की ।
जय विष्णु भगवान की ।
जय कार्तिक महाराज की ।
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