गुरु पूर्णिमा पर्व क्यों व कब माना जाता है ?/Why and when is Guru Purnima celebrated?

गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा ~

भारत में अपने आध्यात्मिक या फिर अकादमिक गुरुओं के सम्मान में उनके वंदन और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। हम सब मनुष्यों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है। ऐसे में माना जाता है कि जिन गुरुओं ने हमें गढ़ने में अपना योगदान दिया है उनके प्रति हमें कृतिजनता का भाव बनाए रखना चाहिए और उसे ज़ाहिर करने के दिन के तौर पर ही गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। हिंदुओं की परंपरा के मुताबिक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

 पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेदव्यास का जन्म दिवस माना जाता है। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा। भारत में प्राचीनकाल से ही गुरुओं की भूमिका काफी अहम रही है। चाहे प्राचीन कालीन सभ्यता हो या आधुनिक दौर, समाज के निर्माण में गुरुओं की भूमिका को अहम माना गया है। उनकी इस भूमिका को सरल और गुड रूप में संत कबीर दास ने अपने दोहे के माध्यम से भी दर्शाया है। अपने दोहे में संत कबीर दास ने गुरुजनों के महत्त्व को श्रेष्ठ दर्जा दिया है। वे लिखते हैं " गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाय है, बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताए " यानी गुरु और गोविंद भगवान एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए गुरु को या गोविन्द को? फिर अगली पंक्ति में उसका जवाब देते हैं। वे लिखते हैं कि ऐसी स्थिति हो तो गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए क्योंकि उनके ज्ञान से ही आपको गोविंद के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। कबीर दास ने गुरु की महिमा को एक दोहे के माध्यम से समझाया है। वे लिखते हैं " गुरु बिन ज्ञान न उपजाए गुरु बिन मिलाये नामों ष गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै ना दोष "। इस दोहे में कबीरदास ने आम लोगों से कहा है की गुरु के बिना ज्ञान का मिलना असंभव है। जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती तब तक कोई भी मनुष्य अज्ञानरूपी अंधकार में भटकता हुआ माया मोह के बंधनों में बंधा रहता है। उसे मोक्ष  नहीं मिलता। गुरु के बिना उसे सत्य और असत्य के भेद का पता नहीं चलता। उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं होता। 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जगतगुरु भगवान शिव ने इसी दिन से सप्तऋषियों को योग सीखाना शुरू किया था। आधुनिक दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने अध्यात्मिक गुरू श्रीमद राजचन्द्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन ही चुना था। गुरु पूर्णिमा का त्यौहार भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। 


卐 जय गुरु देव की 卐


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