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पंचमुखी गणेश जी |
गणेश जी के पंचमुखी रूप के बारे में ~
श्री गणेश की पूजा किसी भी नया शुभ कार्य को करने से पहले की जाती है। भगवान गणेश अपने भक्तों के सारे कष्टों और दुखों को हर लेते हैं इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। लेकिन पंचमुखी गणेश की पूजा करना शुभ और मंगल कारी होता है। पंचमुखी गणेश जी के पांच कोष को वीर में श्रृष्टि की उत्पत्ति, विकास विध्वंश और आत्मा बताया गया है। पंचमुखी का मतलब होता है "पांच मुँह वाले गणेश", गणेश जी के पंचमुख को पांच कोष का प्रतीक भी कहा जाता है। इन पंचकोष को पांच तरह के शरीर कहा जाता है।
भगवान गणेश जी के पंचमुखी या पंचकोष के बारे में ~
1.अन्नमय कोष ~
संपूर्ण जड़ जगत्, धरती, तारे, गृह नक्षत्र आदि ये सभी अन्नमय कोष कहलाते हैं।
2. प्राणमय कोष ~
प्राणमय जड़ में प्राण आने से वायु तत्व जागता है और उससे कई तरह के जीव प्रकट होते हैं, इसलिए इसे प्राणमय कोष कहा जाता है।
3.मनोमय कोष ~
इसे शरीर का तीसरा कोष कहा जाता है, जो प्राणियों के मन में जागृत होता है, जिसमें मन अधिक जागृत होता है ।
4.विज्ञानमय कोष ~
खुश विज्ञानमय कोष बिल्कुल अलग प्रकृति का है, जिसमें सांसारिक माया भ्रम का ज्ञान प्राप्त होता है। सत्य के मार्ग पर चलने वाली बोधि विज्ञानमय कोष होता है।
5.आनंदमय कोष ~
ईश्वर और जगत के मध्य की कड़ी है आनंदमय कोष, कहा जाता है कि इस कोष से ज्ञान प्राप्त करने के बाद मानव समाधियुक्त आदिमानव बन जाता है।
जो भी मानव इन पांच कोष से मुक्त होता है, वह मुक्त मनुष्य ब्रह्मलीन हो जाता है। श्रृष्टि के इन्हीं पांच कोष को गणेश जी के पंचमुखी का प्रतीक माना जाता है। इससे घर पर पंचमुखी भगवान गणेश की फोटो लगाना शुभ और मंगलकारी होता है।
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